Aligarh: मुरसान में जन्मे राजा महेंद्र प्रताप, जब बन गए अपदस्थ सरकार के राष्ट्रपति

 

Raja Mahendra Pratap born in Murasan became the President of the ousted government










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राजा महेंद्र प्रताप सिंह भले ही एक छोटी सी सल्तनत के सुल्तान थे, लेकिन उन्होंने अपने विराट दृष्टिकोण के सहारे उस बुलंदी तक पहुंच गए, जहां हर एक का सपना होता है। मुरसान राज्य से निकलकर अफगानिस्तान में अपदस्थ सरकार के राष्ट्रपति बन गए। उन्हीं के नाम से अलीगढ़ में राज्य विश्वविद्यालय भी है, जिससे हाथरस, एटा, अलीगढ़ और कासगंज के महाविद्यालय संबद्ध हैं।




राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अफगानिस्तान के बादशाह से मुलाकात की और वहीं से भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की। काबुल में 1 दिसंबर 1915 को भारत की पहली अस्थाई सरकार की स्थापना की थी। वह खुद राष्ट्रपति और मौलाना बरकत उल्लाह खां प्रधानमंत्री बने। 

राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1886 को मुरसान में हुआ था। वह स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, लेखक, क्रांतिकारी और समाज सुधारक थे। अलीगढ़ में सर सैयद अहमद खां के बनाए मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज में तालीम हासिल की। राजा का विवाह जिंद की रियासत की राजकुमारी से विवाह हुआ। वर्ष 1906 में जिंद के महाराजा की मर्जी के खिलाफ कलकत्ता (कोलकाता) में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में शामिल हुए। जब इस अधिवेशन से लौटे, तब वह बिल्कुल बदल चुके थे। उनमें देश की खातिर का जोश और उत्साह भर गया था। वर्ष 1909 में वृंदावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की, जो उस समय तकनीकी शिक्षा के लिए भारत का प्रथम केंद्र था। वह जाति और धर्म की दीवार को तोड़ना चाहते थे। उन्होंने प्रेम धर्म की स्थापना की। प्रथम विश्व युद्ध से लाभ उठाकर भारत को गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाने के लिए भारत से बाहर गए और वर्षों तक दुनिया की खाक छानते रहे। जर्मनी के शासक कैसर से भेंट की। इसके बाद अफगानिस्तान, बुडापेस्ट, बुल्गारिया, तुर्की गए। अफगानिस्तान के बादशाह से उन्होंने मुलाकात की और वहीं से भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की। 

काबुल में 1 दिसंबर 1915 को भारत की पहली अस्थाई सरकार की स्थापना की थी। वह खुद राष्ट्रपति और मौलाना बरकत उल्लाह खां प्रधानमंत्री बने। वर्ष 1920 से 1946 तक विदेशों में भ्रमण करते रहे।  मथुरा लोकसभा क्षेत्र के चुनाव में राजा महेंद्र प्रताप ने अटल बिहारी वाजपेयी को हराकर लोकसभा में पहुंचे। नोबल पुरस्कार के लिए भी वह नामित किए गए थे। ऐसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का निधन 26 अप्रैल 1979 को हो गया था।  भारत को आजाद भारत में अटल बिहारी वाजपेयी को पराजित कर सांसद बनें। 
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