चैनल मालिक लोभी हैं, संपादक ठग : संजय सिन्हा

 

संजय सिन्हा-

मुंह छिपाए बैठा हूं… वैसे तो कहना नहीं चाहिए क्योंकि उसी की दाल रोटी से मैंने अपना घर चलाया है, लेकिन यही सच है कि भारतीय मीडिया अब पतन की आखिरी सीढ़ी पर खड़ा है। एक समय था, जब खबर बिना पक्की जानकारी के दिखाना, छापना पाप समझा जाता था। झूठी और मनगढ़ंत खबर छापने के बदले में संपादक को बाकायदा माफी मांगनी पड़ती थी। अब क्योंकि मैं उसी धंधे का हिस्सा रहा हूं इसलिए शर्म भी मुझे ही आती है (आनी भी चाहिए)। अब किसी मीडिया संस्थान में संपादक नाम की कोई संस्था नहीं है। मालिकों को चस्का लग गया है खुद को संपादक कहलाने का। प्रधान संपादक नहीं तो किसी और नाम से सही, लेकिन इस लोभ से वो खुद को बचा नहीं पा रहे हैं।

आप सोच सकते हैं कि हमें अचानक क्या हुआ जो सुबह-सबेरे अपने पेशे को कोसने बैठ गए हैं? हुआ कुछ नहीं है। अब ‘कट-पेस्ट’ का ज़माना है। हर कोई टीपू सुल्तान बना बैठा है। उधर से माल टीपो, इधर उसे चिपका कर सुल्तान बन जाओ। बिना जांचे, परखे, पूछे कि उधर वाले ने खबर की पड़ताल की थी या वो टीपू ही था?

मीडिया अब वो सर्कस बन कर रह गया है, जहां शेर, बाघ, भालू, चीतों के खेल नहीं होते। अब खेल होता है जोकरों का।
मुझे नहीं पता कि जब कोई अखबार पढ़ता ही नहीं, कोई टीवी न्यूज़ चैनल की ओर झांकता भी नहीं तो फिर टीवी न्यूज़ चैनल का खर्चा कैसे चल रहा है? अखबार कैसे छप रहे हैं? छोटे-छोटे अखबारों, न्यूज़ चैनलों के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है। मेरा पूरा करीयर देश के नंबर एक अखबार और चैनलों के बीच ही गुजरा है इसलिए मेरी शिकायत भी उन्हीं से है।

लिखना तो नहीं चाहिए, लेकिन मुझे लगता है कि कम से कम आने वाली पीढ़ी को मीडिया का सच दिखला और बता देना चाहिए ताकि वो इसमें न फंसें। कैसे-कैसे लोग मीडिया समूह के हेड बने बैठे हैं, जो ये तक परखने की कोशिश नहीं करते कि किसी के बारे में जो कहा जा रहा है, वो सच है या नहीं?

एक ने कहा कौआ कान ले गया, सब कौए के पीछे लग गए।
आज बात है यूट्यूबर ध्रुव राठी की। पता नहीं कैसे खबर उड़ गई कि ध्रुव राठी वाइल्ड कार्ड एंट्री लेकर सलमान खान के शो ‘बिग बॉस’ में जाने वाले हैं। ध्रुव राठी एक सुलझे हुए, बढ़िया यूट्यूबर हैं और उनके वीडियो देख कर मेरे मन में हमेशा ये ख्याल आता रहा कि मैं ऐसे वीडियो क्यों नहीं बनाता? हम इस सच को जानते हैं कि जिस लगन को ध्रुव जीते हैं, वो सभी के बूते की बात भी नहीं।

अभी मैंने उनका वो वीडियो देखा जिसमें उन्होंने अपने बारे में छपी खबर का न सिर्फ खंडन किया है कि मीडिया वाले उनके बारे में बेसिर पैर की खबर छाप रहे हैं कि ध्रुव राठी वाइल्ड कार्ड से बिग बॉस में जाने वाले हैं बल्कि मीडिया को लताड़ा भी है।

ध्रुव ने ‘इंडिया टुडे’, ‘इकोनॉमिक्स टाइम्स’, ‘पिंक विला’ समेत तमाम जगहों पर छपी इस खबर को लेकर मीडिया संस्थानों का मजाक उड़ाया कि देखिए ये कैसे मनगढ़ंत खबरों को बिना लज्जित हुए परोस देते हैं।

जाहिर है एक झूठ से सौ सच भी झूठ बन जाते हैं। ध्रुव का ये कहना कि मीडिया वाले झूठे हैं, मुझ जैसे पत्रकार का सीना चीर देता है। मन में आता है कि मैं किस तरह के पेशे में मैं रहा? क्या लोग मेरे बारे में भी वही सोचते होंगे, जो मैं, ध्रुव मीडिया के बारे में सोचने लगे हैं?

मुझे खुशी हुई ध्रुव के इस बयान से कि बिग बॉस वालों ने उनसे कभी संपर्क नहीं किया है। और सबसे बड़ी बात ये कि उन्होंने ये भी कहा कि इस ‘स्टुपिड’ शो में आने के लिए उन्हें करोड़ों रुपए दिए जाएंगे तो भी वो इसमें नहीं जाएंगे। उनकी नज़र में ये शो मूर्खता की पराकाष्ठा है।

मुझे भी यही लगता है। मुझे भी लगता है कि ऐसे शो में कोई भी समझदार आदमी क्यों और कैसे जाएगा? हद है। एक यूट्यूबर ने जिस तरह से मीडिया की विश्वसनीयता को धोया है, उस पर मीडिया मालिकों को एक्शन लेना चाहिए और कम से कम अपने यहां छपी खबर पर पता करना चाहिए कि ऐसी खबर के आने का स्रोत क्या है और खबर आई तो छापने वाले तो क्या दंड मिलना चाहिए।

असल में अब हर बात मजाक बन कर रह गई है। कुछ भी छाप दीजिए, कुछ भी लिख दीजिए। न कोई विरोध करने वाला है, न कोई शिकायत करने वाला। सोचिए, टुटपुंजिया अखबार तक पता नहीं कहां से खबर छाप देते हैं कि ऑडी की वो नई कार भारतीय बाजार में आ रही है, जो अभी जर्मनी में नहीं आई है। छोटे-छोटे अखबारों को भी शौक है कि वो मर्सडीज, बीएमडब्लू, ऑडी, फेरारी की खबर छापें। हॉलीवुड की सूचना दें। अरे भाई कहां से दोगे? स्रोत क्या है? कट पेस्ट? फिर तो मजाक उड़ेगा ही उड़ेगा।

मीडिया का हाल बहुत बुरा है। ये बुराई बढ़ती जा रही है। रोज़ एक स्टेप ऊपर। इस बुराई का सारा दारोमदार मालिकों के लोभ को जाता है। मालिक लोभी हैं, संपादक ठग। आपने कहावत सुनी ही होगी कि लोभियों के गांव में ठग भूखे नहीं मरते।

ठग संपादक मालिकों को टीआरपी की चुसनी पकड़ा कर सब धुंआ-धुंआ कर रहे हैं। मालिक बेहाल हैं टीआरपी के पीछे। टीआरपी मतलब विज्ञापन। ऐसे में संपादक बेच रहे हैं ‘कट पेस्ट’। एक ने खबर उड़ाई, दूसरे ने भी उड़ा दी।

हम आम तौर पर इतनी आसानी से आहत नहीं होते हैं। लेकिन जब हो गए हैं तो तो पता नहीं क्या-क्या कह बैठें? कैसे मीडिया पर ‘भोंडे संपादकों’ का राज चल निकला है। आज नहीं, कभी न कभी वो सच भी आपके सामने होगा ही। होना भी चाहिए।

फिलहाल तो ध्रुव राठी ने जिस तरह मीडिया को धोया है, उससे लगने लगा है कि अब मीडिया पतन के शिखर पर ही है। मैं सब छोड़ कर बैठा हूं ऐसा इसलिए नहीं कह रहा, बल्कि मैं सब छोड़ कर बैठा ही इसलिए हूं क्योंकि मुझे ऐसा ही लगने लगा था।
ध्रुव राठी जी, ऐसे ही वीडियो बनाते रहिए। उनका सच सामने लाते रहिए, जिसे लाने की हिम्मत हम जैसे मीडिया वाले नहीं करते हैं। लानत है मुझे। लानत है उन पर जो मीडिया पर अब भी यकीन करते हैं। मीडिया अब चौथे चरण के कैंसर से गुजर रहा है। किसी दिन खबर आएगी कि कभी वो थे नंबर वन।

संजय सिन्हा टीवी टुडे ग्रुप में सीनियर एडिटर और चैनल हेड रह चुके हैं.

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