आजाद हिन्द फ़ौज की नींव रखने बाले प्रथम सरकार मोक्तार-ए-हिन्द सरकार के राष्ट्रपति राजा महेंद्र प्रताप


 

राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1886 को मुरसान उत्तर प्रदेश के राजा घनष्यामसिंह के तीसरे पुत्र के रूप में हुआ। लेकिन बाद में उनको हाथरस के राजा हरनारायणसिंह ने गोद ले लिया। इन्होंने अपनी बीए तक की शिक्षा सर सैय्यद खा स्कूल से की।

महेंद्र प्रताप सिंह के प्रारंभिक जीवन परिचय की कहानी इतिहासकहानी शुरू होती है, 1817 से जब हाथरस के राजा दयाराम(raja dayaram) ने अंग्रेजो से युद्ध किया और मुरसान(mursan) के राजा ने भी हाथरस के राजा का खूब साथ दिया। जब हाथरस(Hathras) के राजा दयाराम को अंग्रेजो ने बंदी बना लिया तब उनकी मृत्यु 1841 में हो गई। और राजा दयाराम के पुत्र गोविंद सिंह गद्दी पर बैठे और गोविंद सिंह ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजो का साथ दिया लेकिन अंग्रेजो ने गोविंद सिंह को राज्य लौटने से इंकार कर दिया।और फिर कुछ गांवों ने मिलकर 50000 रुपए अंग्रेजो को दिए और राजा की पदवी और पूरे राज्य का अधिकार अंग्रेजो और राजा गोविंद सिंह से छीन लिया। और 1861 में राजा गोविंद सिंह का भी देहांत हो गया। गोविंद सिंह का कोई पुत्र न होने के कारण अंग्रेजो ने महारानी साहबकुँवरि को पुत्र गोद लेने का अधिकार दे दिया गया। और साहिब कुमारी ने ठाकुर रूप सिंह के पुत्र हरनारायण सिंग को गोद ले लिया। और हरनारायण के भी कोई पुत्र न होने के कारण उन्होंने मुरसान के राजा घनश्याम (raja ghanshyam) के तीसरे पुत्र महेंद्र प्रताप सिंह को गोद ले लिया। और राजा महेंद्र प्रताप सिंह मुरसान छोड़कर हाथरस राज्य के राजा बने। हाथरस राज्य की राजधानी वृंदावन में है जहां पर एक विशाल भव्य महल में राजा महेंद्र प्रताप सिंह रहते थे।राजा महेंद्र प्रताप सिंह का विवाहराजा महेंद्र प्रताप सिंह का विवाह हरियाणा राज्य के जींद रियासत की राजकुमारी संगरूर के साथ हुआ। उनके विवाह में बारात भी ट्रेन से ले जाई गई। 2 ट्रेन में बारात ले जाना उस जमाने में किसी राजसी ठठबाठ से कम न था। कहते है , की राजा महेंद्र प्रताप सिंह जब भी अपने ससुराल जाते थे तो उनको 11 तोपो की सलामी दी जाती और स्टेशन पर सभी अफसर उनका भव्य स्वागत किया करते थे।

महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा आजाद हिन्द फौज का गठनमहेंद्र प्रताप सिंह की आजाद हिंद फौज(aazad Hind fauj) का संबंध सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज से बिल्कुल भी नहीं था उन्होंने अफगानिस्तान के लोगो के साथ मिलकर भारत की स्वतंत्रता के लिए आजाद हिंद फौज का गठन किया और भारत को एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया। और अपने आप को स्वतंत्र भारत का पहला राष्ट्रपति घोषित किया।

हिदू मुस्लिम एकता के पक्षधर

महेंद्र प्रताप सिंह (mahendra pratap singh) धर्मनिरपेक्ष राजा थे जिन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के लिए जमीन दान दी और आर्य प्रतिनिधि सभा को 80 एकड़ का बाग दान में दे दिया।राजा महेंद्र प्रताप सिंह जातिगत छुआछूत के भी बिलकुल खिलाफ थे। उन्होंने सभी भारतीयों के लिए उच्च शिक्षा का प्रावधान किया और सभी को उच्च शिक्षा लेने के लिए प्रेरित किया।

प्रेम विश्वविद्यालय की स्थापना

राजा महेंद्र प्रताप सिंह अपनी संपूर्ण संपत्ति प्रेम विश्वविद्यालय को दान करना चाहते थे लेकिन राज्य के कुछ भरोसेमंद मंत्रियों ने समझाया कि यह उनकी संपत्ति नहीं है यह उनकी पुश्तैनी संपत्ति है इसलिए राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी आधी संपत्ति प्रेम विश्वविद्यालय को दान कर दी। जिसमे 2 महल और 5 गांव शामिल थे।उन्होंने अपनी माताओं के रहने का स्थान तक विश्वविद्यालय के लिए दान कर दिया लेकिन बाद में उन्होंने अपनी माताओं के रहने के लिए विश्वविद्यालय से वह जमीन ₹10000 में खरीद ली। 1909 में प्रेम विश्वविद्यालय(prem University) की रजिस्ट्री करा दी गई और महारानी विक्टोरिया के जन्मदिन पर प्रेम विश्वविद्यालय(University) को शुरू किया गया।

राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय

अब उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह को सम्मान देने के लिए उत्तर प्रदेश के जिले अलीगढ़ में उनके नाम से विश्वविद्यालय खोलने का निर्णय लिया है।

उत्तर प्रदेश में यूनिवर्सिटी बनने को लेकर राजा महेंद्र प्रताप सिंह एक बार फिर चर्चा में हैं। बीजेपी सरकार ओबीसी में जाटों को साधने के लिए यूनिवर्सिटी बनवा रही है ऐसा सभी का कहना है लेकिन बीजेपी सरकार एकदम सही कार्य करती है, ये भी लोगो का मानना है।

राजा महेंद्र प्रताप सिंह किस जाति(cast) के है?

विकिपीडिया के अनुसार राजा महेंद्र प्रताप सिंह को जाट(jaat) जाति का बताया जा रहा है।

राजा महेंद्र प्रताप सिंह की फोटोराजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म कब और कहां हुआ?

1 दिसंबर 1886 को हाथरस, उत्तर प्रदेश भारत

राजा महेंद्र प्रताप सिंह का उपनाम क्या है?

राजामहेंद्र प्रताप सिंह को आर्यन पेशवा के उपनाम से जाना जाता है।

राजा महेंद्र प्रताप सिंह किस रियासत के राजा थे?

राजा महेंद्र प्रताप सिंह(raja mahendra pratap singh) मुरसान रियासत के राजकुमार और हाथरस रियासत में राजा थे।

देश की खातिर तमाम यातनाएं सहीं, देश को एएमयू समेत तमाम शैक्षणिक संस्थाएं दीं। ऐसे वीर पुरुष के जन्मदिवस के मौके पर जानिए उसकी वीरगाथा।

हाथरस। जनपद हाथरस के राजा महेंद्र प्रताप सिंह अगर चाहते तो अंग्रेजों का प्रस्ताव स्वीकार कर पूरी जिंदगी बड़े ही ऐश और आराम के साथ बिता सकते थे। लेकिन उन्होंने देश को सर्वोपरि समझा। अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में बंधने के बजाय देश की खातिर यातनाएं सहना मंजूर किया। वर्षों तक देश से बाहर रहकर वे देश की आजादी के लिए संघर्षरत रहे। बहुत कम लोग जानते हैं कि जिस आजाद हिंद फौज के लिए सुभाष चंद्र बोस को जाना जाता है, उसे खड़ा करने में राजा महेंद्र सिंह ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। आज 1 दिसंबर यानी उनके जन्म दिवस के मौके पर जानते हैं राजा महेंद्र सिंह के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।
हाथरस के राजा ने लिया था गोद
राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 1 दिसम्बर 1886 को मुरसान के नरेश बहादुर घनश्याम सिंह के यहां हुआ था। लेकिन उन्हें हाथरस के राजा हरिनारायण सिंह ने गोद ले लिया था। राजा हरिनारायण की मृत्यु केे बाद 20 वर्ष की उम्र में राजा महेन्द्र प्रताप की ताजपोशी हो गई। लेकिन अंग्रेजी निजाम ने उन्हें राजा की उपाधि नहीं दी। चूंकि जनता उनकी बहादुरी और देशभक्ति का सम्मान करती थी, लिहाजा जनता ने उन्हें शुरुआत से ही अपना राजा माना और राजा साहब कहना शुरू कर दिया था।
लंबा समय विदेश में गुजारा
राजा महेंद्र प्रताप सिंह बचपन से ही आजाद भारत का स्वप्न देखते थे, जिसको पूरा करने के लिए उन्होंने 31 वर्ष सात माह तक विदेश में रहकर आजादी का बिगुल बजाया। इस दौरान वे जर्मनी, स्विटरजरलैंड, अफगानिस्तान, तुर्की, यूरोप, अमरीका, चीन, जापान, रूस आदि देशों में घूमकर आजादी की अलख जगाते रहे। इस पर शासन ने उन्हें राजद्रोही घोषित कर उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली। उस समय भारत की आजादी के लिए हजारों देशभक्त अपनी जिंदगियां न्यौछावर कर रहे थे। जो जीवित बच जाते थे, उनको पीने के लिए पानी भी नसीब नहीं होता था। खाने के नाम पर कोड़े मिलते थे। अंग्रेजी हकूमत और देसी कारागार में उनको रात व दिन का पता भी नहीं चल पाता था। राजा महेंद्र प्रताप भी उन क्रांतिकारियों में से एक थे जिन्होंने देश की खातिर ऐसी तमाम यातनाएं सहीं।
आजाद हिंद फौज बनायी
विदेश में रहने के दौरान राजा महेन्द्र प्रताप, सुभाषचंद्र बोस से मिले और आजाद हिन्द फौज की नींव रखने में बड़ी भूमिका निभाई। विदेश में ही रहकर उन्होंने आजाद भारत की पहली सरकार का गठन किया जिसके राष्ट्रपति स्वयं बने। भारत के स्वतंत्र होने के बाद वे स्वदेश लौटे और आजाद भारत में लोकतंत्र ही आधारशिला में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। वर्ष 1979 में भारत सरकार ने राजा साहब नाम से डाकटिकट जारी की थी। यह स्पेशल टिकट संग्रहकर्ताओं के पास आज भी सुरक्षित है।




एएमयू निर्माण के लिए जमीन दान की
राजा महेन्द्र प्रताप शिक्षा के महत्व को अच्छे से समझते थे, लिहाजा उन्होंने उस समय देश को तमाम शैक्षिक संस्थाएं दीं, जब लोग शिक्षा व्यवस्था की जानकारी भी नहीं रखते थे। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के निर्माण के लिए उन्होंने जमीन का बड़ा हिस्सा दान किया, जिसके बाद उस जमीन पर यूनिवर्सिटी का निर्माण हुआ। वहीं राजा साहब ने मथुरा-वृंदावन में सैकड़ों बीघा जमीन को सामाजिक संगठनों एवं शिक्षण संस्थानों को दान में दे दिया था।
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